पाकुड़ से लौटकर विकास
कुमार सिन्हा
गांव के लोग विकास
के प्रति जागरूक हो रहे हैं। सरकारी योजनाओं की पाई-पाई की राशि का हिसाब सरकारी अधिकारियों से मांग
रहे हैं। सरकार द्वारा संचालित किये गये मनरेगा सहित अन्य योजनाओं में खर्च का ब्योरा
भी ग्रामीण मांग रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार उनके लिये मनरेगा योजना संचालित
की है। सरकारी अधिकारी बिना बताये ही योजना बना रहे हैं। आम सभा में योजना स्थल के
चयन के स्थान दूसरे कार्यस्थल पर योजनाओं का प्रतिपादन किया जा रहा है, जो सरकारी अधिनियम का उल्लंघन है। मनरेगा एक्ट के नियमों के अनुसार लाभुकों
को भुगतान में भी धांधली बरती जा रही है। जॉब कार्ड ग्राम रोजगार सेवक और ठीकेदारों
के पास जब्त है। मनरेगा एक्ट के अनुसार मजदूरी भुगतान भी नहीं हो पा रहा है। यह स्थिति
पूरे झारखंड की है।
गुमला जिले अंतर्गत
डुमरी के करनी पंचायत में मनरेगा योजनाओं में अनियमितता बरती गयी है। सोशल ऑडिट में
जॉब कार्ड और मजदूरी भुगतान में भारी अनियमितता पायी गयी है। 45 लाभुकों को मात्र 40 दिन का ही काम मिला, बाकि 55 दिनों
का न उन्हें काम मिला और न ही भुगतान। लाभुक मनबहल मुंडा कहते हैं कि मनरेगा में काम
के दिलासे के कारण वह शहर नहीं गया, लेकिन यहां शहरों से भी स्थिति
बदतर है। मनरेगा में 100 दिनों का न काम मिला और न ही काम किये
गये 45 दिनों का पूरा भुगतान। अब हम क्या खायेंगे। मुखिया के
बार-बार कहने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती। कुछ इसी तरह की कहानी
हरि मुंडा, रोपन एक्का, रोहन एक्का और जेवियर
तिकी की भी है। सोशल ऑडिट के दौरान जब मनरेगा एक्ट के बारे में जानकारी दी गयी,
तो सभी लाभुक ग्राम रोजगार सेवक और मुखिया से हिसाब मांगने लगे। रोहन
एक्का कहता है कि जब सरकार ने उनके लिए 100 दिनों के काम का कानून
बनाया, तो ग्राम रोजगार सेवक उसे काम दिलाये, नहीं तो 100 दिनों की मजदूरी का भुगतान करें।
संताल परगना प्रमंडल
में मनरेगा की स्थिति और भयावह है। पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड अंतर्गत केंदुआ पंचायत
में वनपोखरिया गांव में मनरेगा के तहत कई योजनाएं ली गयी। यह सभी योजनाएं ग्रामसभा
से निर्गत की गयी थी। वनपोखरिया में भूमि समतलीकरण के 7, जलकुंड के 9 तालाब निर्माण
के 3 और सिंचाई कूप की 3 योजनाएं पास की
गयी। मनरेगा के तहत कराये गये इन कार्यों में मजदूरी दर लाभुकों को काफी कम मिला। लाभुकों
को मजदूरी दर 122 के बदले 100 रुपये ही
भुगतान किया गया। वनपोखरिया गांव के लाभुकों से मनरेगा एक्ट के तहत मजदूरी का भुगतान
नहीं किया गया। लाभुकों को मात्र 100 में 30 से 40 दिनों का ही काम दिया गया, जो गैरकानूनी है। उन्हें 70 दिनों दिनों का भुगतान भी
नहीं मिला। सिंचाई कूप में 35 फीट के स्थान पर मात्र
28 फीट ही गहराई की गयी, वस्तुत तीन में दो सिंचाई
कूप सूख गये हैं। मात्र एक कूप से लोग पेयजल के लिए काम में ला रहे हैं। जलकुंड की
भी यही स्थिति है। पानी व गहराई कम होने के कारण खेतों में सिंचाई कार्य नहीं किये
जा रहे हैं। इतनी अनियमितता मनरेगा में बरती गयी है।
केंदुआ पंचायत के मुखिया
मुड़की पहाड़िया कहते हैं कि वनपोखरिया में ग्राम रोजगार सेवक व ठीकेदारों से हिसाब मांगा
जायेगा। पूरे पंचायत की यही स्थिति है। योजनाओं में अनियमितता बर्दाश्त नहीं की जायेगी।
ग्राम रोजगार सेवक व प्रखंड विकास पदाधिकारी से लाभुकों के मस्टर रोल मांगा गया है।
मस्टर रोल में ही लाभुकों के 70 दिन का हिसाब-किताब जांच की जायेगी। मनरेगा
सामाजिक अंकेक्षण के जनसुनवाई के दौरान मुखिया मुड़की पहाड़िया कहते हैं कि मनरेगा के
बारे में इतनी जानकारी हमें नहीं थी, जनसुनवाई के दौरान मनरेगा
एक्ट के बारीकियों को समझने का मौका मिला। ग्राम प्रधान शिबू पहाड़िया कहते हैं कि
``हमारी योजनाओं को ही सरकारी अधिकारियों ने नहीं लूटा, बल्कि उन्होंने हम सबों के सपनों को ही लूट लिया, अब
उन्हें एक-एक पाई का हिसाब देना होगा। मनरेगा के तहत सरकार ने
हमें काम दिया है, हमें रोजगार दिया है, लेकिन ग्राम रोजगार सेवक एवं अन्य अधिकारियों ने मिलकर मनरेगा और हमारे सपनों
को लूट लिया, अब उन्हें हिसाब देना होगा।''
मनरेगा के तहत संचालित
योजनाओं का वित्तीय वष्र्ा 2012-13 से निगरानी रखी जायेगी। प्रत्येक येाजनाओं का कार्यस्थल के चयन में भी ध्यान
रखा जायेगा। मनरेगा एक्ट के तहत कार्यस्थल पर मिलने वाले लाभुकों की सुविधाओं पर भी
नजर रखी जायेगी। मेट को प्रशिक्षण भी दिलाया जायेगा, जिससे पंचायत
में होने वाली योजनाओं में धांधली न हो और लोगों को सुविधाएं मिले।
भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के कार्यक्रम समन्वयक एवं सीनियर
सोशल ऑडिट फैसिलेटरर्स रामजीवन पहाड़िया कहते हैं सामाजिक अंकेक्षण से योजनाओं की सही
रूपरेखा मालूम होती है। किस योजना में अनियमितता बरती गयी है, कौन सी योजना सही रूप से कार्यान्वयन किया गया है, लाभुकों
को कितनी मजदूरी का भुगतान किया गया है, योजना स्थल का चयन में
अनियमितता तो बरती नहीं गयी है, योजना स्थल पर मजदूरों को कौन-कौन सी सुविधा उपलब्ध करायी गयी ..... आदि अन्य महत्वपूर्ण
पहलुओं की जानकारी मिलती है। पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही योजना
मूल्यांकन किया जाता है। इसमें पंचायत व जिला प्रशासन के अधिकारियों से भी सहयोग लिया
जाता है। दस्तावेजीकरण के लिए जिला प्रशासन की भूमिका अहम है। श्री पहाड़िया अपने अनुभव
बयां करते हैं कि केंदुआ पंचायत में वनपोखरिया का सोशल ऑडिट करते वक्त सभी टूल्स का
इस्तेमाल किया गया। आम सभा कर योजनाओं की सही जानकरी ली गयी, मनरेगा मेट अर्जुन पहाड़िया और ग्राम प्रधान शिबू पहाड़िया को साथ में रखा गया।
ग्राम प्रधान से महत्वूपर्ण जानकारियां ली गयी। विकास योजनाओं के चयन स्थल पर जांच पड़ताल की गयी। केंदुआ पंचायत
में भारी अनियमितता पायी गयी है।
स्वयंसेवी संस्था एफिकोर
के अनुपम नयन कहते हैं कि पैक्स-मनरेगा के तहत झारखंड के 10 जिलों में विभिन्न
पंचायतों में सोशल ऑडिट कराया जा रहा है। मनरेगा के सामाजिक अंकेक्षण के दौरान कई अनियमितता
पायी जाती है। सोशल ऑडिटर जनसुनवाई के दौरान ग्रामीणों को मनरेगा के बारे में बताया
जाता है। साथ ही, भविष्य में ऐसी गलती न हो, इसके लिए मुखिया व अन्य पंचायत प्रतिनिधियों को सलाह दी जाती है।
हमारे सपनों को भी लूट लियाः ग्राम प्रधान
ग्राम प्रधान शिबू
पहाड़िया कहते हैं कि ``हमारी
योजनाओं को ही सरकारी अधिकारियों ने नहीं लूटा बल्कि उन्होंने हम सबें के सपनों को
ही लूट लिया, अब उन्हें एक-एक पाई का हिसाब
देना होगा। मनरेगा के तहत सरकार ने हमें काम दिया है, हमें रोजगार
दिया है, लेकिन ग्राम रोजगार सेवक एवं अन्य अधिकारियों ने मिलकर
मनरेगा और हमारे सपनों को लूट लिया, अब उन्हें हिसाब देना होगा।''
पंचायतों में दक्षता
की कमीः गुरजीत, मनरेगा
लोकपाल
मनरेगा लोकपाल श्री
गुरजीत ने बताया कि पंचायतों में मनरेगा एक्ट के पालन को लेकर जो दक्षता होनी चाहिए, वह अब तक नहीं हो पायी है। पंचायत प्रतिनिधियों
को मनरेगा की पूरी जानकारी नहीं है। मनरेगा एक्ट के तहत दिये गये प्रावधानों के बारे
में जबतक जानकारी नहीं होगी, तबतक धांधली व अनियमितता होती रहेगी।
विश्ोष्ाता मनरेगा का काम पंचायतों में ही होना है, ग्राम सभा
के जरिये विकास योजनाओं का चयन किया जाता है। ऐसी स्थिति में पंचायतों को इस एक्ट की
जानकारी हाेनी चाहिए। सरकार के स्तर पर मनरेगा में जो तैयारी होनी चाहिए थी वह अब तक
नहीं हो पायी है। मांग के अनुसार विकास योजनाएं बननी चाहिए। इसमें सरकार में भी इच्छाश्ाक्ति
की कमी है। झारखंड में सरकारी अधिकारी आज तक मनरेगा को योजना मानते हैं, जबकि मनरेगा एक्ट है। यह भारत सरकार द्वारा निर्मित कानून है। अगर मनरेगा को
एक्ट के तहत पालन किया जाये, तो अनियमितता में कमी आयेगी।
सरकार के पास विजन
की कमीः बलराम
नरेगा वॉच के सदस्य
व सामाजिक कार्यकर्ता श्री बलराम के अनुसार झारखंड सरकार में विजन की कमी के कारण मनरेगा
के तहत संचालित विकास योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है। मनरेगा को लेकर
सरकार ने आज तक नीति ही नहीं बनायी है। राज्य में 78000 सिंचाई कूप बनाये जाने थे, जिसमें अनियमितता ही नजर आती है। कूप के कार्यस्थल का चयन भी गड़बड़ी पायी गयी
है। इतनी बड़ी संख्या में सिंचाई कूप के निर्माण होने से महिलाओं व विकलांगों को योजनाओं
में श्ाामिल नहीं किया जा सका। बलराम के अनुसार योजना ऐसी बनायी जानी चाहिए,
जिससे आम लोगों को लाभ मिले। झारखंड में जॉब कार्ड की भी अजीबोगरीब स्थिति
है। पाकुड़ जैसे जिलों में लाभुकों ने आज तक जॉब कार्ड देखा ही नहीं है। जॉब कार्ड बनने
के बाद ग्राम रोजगार सेवक या फिर ठीकेदार के पास जब्त कर रखा गया है। बलराम के अनुसार
जॉब कार्ड आज तक पाकुड़ के लाभुकों ने देखा ही नहीं है। पलामू में कुएं का चयन स्थल
में भी गड़बड़ी पायी गयी है। राजधानी से सटे रातू प्रखंड में मनरेगा में कई अनियमितता
मिल रही है।
हाशिये के लोगों को
मिलेगा रोजगारः जॉनसन
मनरेगा का उद्देय हाश्िाये
से लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना है। मनरेगा यानि महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी
योजना के तहत वर्ष के 365 में 100 दिनों का रोजगार दिया जाता है। यह योजना वष्र्ा
2006 से लागू है। इस योजना के तहत ग्रामीण आधारभूत संरचना के निर्माण
के लिए उत्पादनकारी संपत्ति का निर्माण करेगा, जिससे ग्रामीण
समुदाय को निर्धनता से लड़ने के लिए सश्ाक्त बनाया जा सकेगा। इसके तहत निर्धन ग्रामीण
और भूमिहीन समुदाय का सामाजिक रूप से बहिष्कृत समुदाय, अनसूचित
जाति/जनजाति और मुसिलम महिलाओं एवं विकलांगों के लिए और भी ज्यादा
महत्वपूर्ण है। मनरेगा का कथन है कि यह अधिनियम लोगों का, लोगों
द्वारा लोगों के लिए है। इस योजना के तहत मनरेगा के प्रारंभ होने से गरीबी,
भूखमरी व निर्धनता पर रोक लगेगी। पलायन को रोकने में पैक्स-मनरेगा अभियान कारगर सिद्ध होगा। अगर मनरेगा में इन योजनाओं को सही रूप से
क्रियान्वयन किया गया, तो हाश्िाये के लोगों को रोजगार उपलब्ध
हो सकेगा।
अनियिमतता की खबरें
मनरेगा सेल तक पहुंचायें ः डॉ अरुण कुमार, मनरेगा आयुक्त
मनरेगा आयुक्त डॉ अरुण
कुमार ने कहा कि मनरेगा में धांधली व अनियमितता की खबरें आती हैं। मनरेगा सेल में खबर
मिलते ही दोिष्ायों पर कार्रवाई की जायेगी। ग्रामीण मनरेगा सेल से संपर्क कर सकते हैं।
पाकुड़ के केंदुआ पंचायत के सोश्ाल ऑडिट रिपोर्ट पर उन्होंने कहा कि इस संबंध में जांच
करायी जायेगी। जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई की जायेगी।
मनरेगा में मात्र 60 फीसदी ही खर्च हुई राशिः जयराम रमेश
केंद्रीय ग्रामीण विकास
मंंत्री जयराम रमेश्ा का मानना है कि झारखंड में मनरेगा बजट का मात्र 60 फीसदी ही राश्िा खर्च की गयी है। वर्ष
2012-13 में 760 लाख लोगों को मनरेगा के तहत काम
देने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन जनवरी तक मात्र 452 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सका है, जो कि मनरेगा
का मात्र 60 फीसदी राश्िा ही खर्च की जा सकी है। निर्धारित राशि
1638 करोड. रुपये के मुकाबले मात्र
1052 करोड. रुपये खर्च हुई है।
12 लाख
लोगों को ही मिला रोजगार
झारखंड में लाभुकों
को नियमित समय पर मजदूरी नहीं दी जा रही है। 40 लाख के एवज में मात्र 12 लाख लोगों को
रोजगार से जोड़ा जा सका। चालू वित्तीय वष्र्ा में राज्य प्रश्ाासन ने 40 लाख 45 हजार 690 परिवारों को जॉब
कार्ड दिया। इसके विपरित महज 12 लाख 12 हजार 876 परिवारों ने ही रोजगार की मांग की। इनमें से
34,530 परिवारों को ही सौ दिनों का काम मिला। अब तक देवघर के
3851 परिवारों ने काम पाया, जबकि पलामू इस मामले
में फिसड्डी साबित हुई है। पलामू में महज 360 परिवारों को ही
100 से अधिक दिनों का रोजगार मिल सका है। राज्य सरकार से मिली
रिपोर्ट के अनुसार चालू वित्तीय वष्र्ा में अनुसूचित जाति के 5,44,912, अनुसूचित जनजाति के 15,11,915, जबकि अन्य वर्गों के कुल
19,88,863 परिवारों को ही जॉब कार्ड जारी किया गया। इस अवधि में अनुसूचित
जाति के लोगों को 49,69,607, अनुसूचित जनजाति के लोगां को
1,62,65,451 तथा अन्य वर्ग के लोगों को 1,87,29,359 दिनों का काम मिला।
कुछ तथ्य
फरवरी 2013 तक की रिपोर्ट पर आधारित
कुल लेबर बजट - 1638 करोड़
केंद्र की राश्िा 1484 करोड़
केंद्र ने अब तक दिया 581 करोड़
जारी हुए जॉब कार्ड - 40,45,690
लोगों ने मांगा काम -12,12,876
मिला काम - 12,05,244
मानव दिवस का सृजन - 3,99,64,417
अनियमितता को उजगार
करता सामाजिक अंकेक्षण ः -
सामाजिक अंकेक्षण के
महत्वपूर्ण टूल्स
समाजिक अंकेक्ष्ाण (सोश्ाल ऑडिट) ग्राम सभा
की बैठकों में भी सामाजिक ऑडिट के सभी क्रियाकलापों की अनिवार्य रूप से समीक्षा की
जानी चाहिए। सामाजिक अंकेक्षण से आये परिणाम को जनसुनवाइर् के तहत सभी को सुनाया जायेगा।
अधिकारियों से प्रश्न पूछने, जानकारियां हासिल करने, खर्चों की जांच और निरीक्षण करने, अपने अधिकारों की जांच-पड़ताल करने, कामों का चुनाव किये जाने, ग्रामीणों, कमर्र्चारियों व अधिकारियों एवं पंचायत प्रतिनिधियों
के समक्ष योजनाओं का मूल्यांकन कर व्यवहारत्मक व आलोचनात्मक ढंग से जनसुनवाई की जाती
है। सामाजिक अंकेक्षण में लाभुकों को खुलकर अपनी बात रखने का हक है। जनसुनवाई को लेकर
प्रमुख रूप से प्रचार-प्रसार करने की जरूरत है। सामाजिक अंकेक्षण
के तहत कई आयाम भी हैं, जिन पर सामाजिक अंकेक्षण के दाैरान चर्चा
की जाती है। इनमें काम की गणुवत्ता, काम के विविध आयाम,
काम के विविध आयाम, स्थान का चुनाव, न्यून्तम मजदूरी का भुगतान किया गया या नहीं, क्या मजदूरी
का समय पर भुगतान किया गया, क्या खरीदी गयी सभी चीजों का भुगतान
हो गया, क्या काम के दौरान चौकसी समिति के पास कोई श्िाकायत आयी,
जो श्िाकायत आयी उन पर क्या कार्रवाई की गयी, कार्यस्थल
पर निर्धरित मानकों के हिसाब से सुविधाएं उपलबध करायी गयी या नहीं, परियोजना के लिए किस तरह की मरम्मती और रख-रखाव की जरूरत
पड़ेगी, ग्राम पंचायत में विकास कार्यों से संबंधित के सामान्य
मुद्दों को भी सामाजिक ऑडिट फोरम में दर्ज किया जाना चाहिए और उन पर चर्चा की जानी
चाहिए, अधूरे कामों और इस्तेमाल नहीं की जा रही चीजों की सूची
तैयार करनी चाहिए, मजदूरी भुगतान से संबंधित ब्यौरा उपलब्ध कराना
और दस्तावेजों की रिकार्ड आदि पर चर्चा होनी चाहिए।
सामाजिक अंकेक्षण में होते हैं दस्तावेजों की जांच ः-
सामाजिक अंकेक्ष्ाण
में सभी दस्तावेज मौजूद होने चाहिए। मस्टर रोल का सारंश्ा पढ़कर सुनाया जाना चाहिए ताकि
किसी तरह की कोई विकृत्ति न रह जाये, माप-पुस्ितका का सारांश्ा पढत्रकर सुनाया
जाना जरूरी है, काम श्ाुरू होने से पहले, काम के दौरान ओर काम पूरा होने े बाद खींची गयी तस्वीरें सामाजिक ऑडिट फोरम
के मौके पर सावर्जनिक रूप से उपलब्ध होनी चाहिए।
सात दिनों के अंदर हो मजदूरों का भुगतान -
मनरेगा एक्ट के अनुसार
लाभुकों को मजदूरी भुगतान के बारे में स्पष्ट दिश्ाा-निर्देश्ा दिया गया है। मजदूरों को सात दिनों
के भीतर मजदूरी का भुगतान किया गया है या नहीं। क्या पूर्व-निर्धारित
स्थान और पूर्व-निर्धारित समय पर वेतन भुगतान किया गया था। नोटिस
बोर्ड पर हाजिरी रजिस्टर की प्रतियां आदि चिपका कर भत्ते के भुगतान से संबंधित कोई
श्िाकायत विचाराधीन है? क्या निर्धारित कोटे के हिसाब से महिलाओं
को 33 प्रतिश्ात रोजगार आबंटित किये जा रहे हैं?, क्या रोजगार रोजगार आंबटन के लिए आवेदन प्राप्ति की तारीख पर आधारित रोस्टर
प्रण्ााली का पालन किया जा रहा है या नहीं? मजदूरों को निवास
स्थल से पांच किलोमीटर की दूरी पर काम दिया गया है नहीं । क्या मजदूरों को न्यूनतम
वेतन के 10 प्रतिश्ात के बराबर अतिरिक्त राश्िा यातायात और आजीविका
भत्ते के रूप् में दी जा रही है?
कामों की मंजूरी में पारदश्िर्ाता को जानें -
क्या प्रस्तावित कार्यों
की सूची ग्रामसभा की बैठक में तैयार की गयी थी?
क्या तकनीकी आकलन तैयार
करने के दौरान जूनियर इंजीनियर के गांव के निवासियों से सुझाव ली थी?
क्या परियोजनाओं की
स्वीकृत सूची में से कामों को तय नियमों के हिसाब से ही चुना गया था?
क्या ग्राम पंचायत
के इलाके में पिछले छह माह के दौरान स्वीकृत और लागू किये गये कामों के लिए स्वीकृत
रािष्ा और वास्तविक व्यय का ब्यौरा पढ़ कर सुनाया गया था
क्या ग्राम पंचायत
के नोटिस बोर्ड पर लिखे कामों की सूची को संश्ाोधित किया है ?
योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदश्िर्ाता ः -
क्या कार्य आदेश्ाों
को निष्पक्ष्ा और पारदश्र्ाी ढंग से जारी किया गया और क्या उनके बारे में पर्याप्त
प्रचार किया गया था?
क्या कार्यस्थल पर
ऐसा कोई बोर्ड था, जिस
पर संबंधित कार्य के लिए स्वीकृत राश्िा, काम के विविध आयाम आैर
बाकी जरूरी जानकारियां दी गयी हों?
क्या काम श्ाुरू होने
से पहले परियोजना बैठक बुला कर मजदूरों को काम और मजदूरी के दर बताने और सुनाने की
जिम्मेवारी पूरी की?
ग्रामसभा सदस्यों के
सवालों का जवाब देने के लिए उन सभी अधिकारियों को सामाजिक ऑडिट फोरम में जरूर आना चाहिए, जो क्रियान्वयन की प्रक्रिया से जुड़े रहे हैं।
फोरम के सारे प्रस्ताव
और फैसले मतदान के आधार पर लिये जायेंगे, लेकिन जो लोग अल्पमत में हैं उनकी बात भी नोट जरूर की जानी चाहिए।
बैठक में की गयी बातें
प्रत्येक मिनट्स एक निर्धारित प्रारूप में लिख्ाा जाना चाहिए और लिखने के लिए ऐसे व्यक्ति
को चुना जाना चाहिए, जो
क्रियान्वयन निकाय से जुड़ा हुआ नहीं हो। मिनट्स रजिस्टर पर बैठक श्ाुरू होने से पहले
और बैठक खत्म होने के बाद सभी सहभागियों के हस्ताक्ष्ार अवश्य करा लेना चाहए।
ग्राम सभा में सामाजिक
अंकेक्षण व आवश्यक प्राथमिकताएं -
सामाजिक अंकेक्षण के
पूर्व सारी सूचनाएं उपलब्ध होनी चाहिए।
जांच व सत्यापन हेतु
सभी सूचनाओं का सरलीकरण होना चाहिए ताकि लोग समझ सकें। सभी प्रपत्रों का जल्दी व आसानी
से प्रस्तुतीकरण हो सके इस प्रकार तय किये जाने चाहिए।
ऐसा वातावरण तैयार
होना चाहिए ताकि लोग बिना भय व संकोच के अपनी बात कह सकें।
स्ंाबंधित अधिकारियों
को सामाजिक अंकेक्षण के समय उपस्थित रहकर सवालों के जवाब देना चाहिए।
सामाजिक अंकेक्षण के
प्रस्तावों पर अनिवार्य रूप से कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
जानें सामाजिक अंकेक्षण
के बारे में -
समाजिक अथवा लोक अंकेक्ष्ाण (सोश्ाल ऑडिट) किसी विश्ोष्ा
योजना अथवा कार्य के सभी लेखों-जोखों का सोश्ाल ऑडिटर द्वारा
जांच किया जाता है
कार्य की गुणवत्ता, उपलब्धियों और विश्ोष्ा कार्यक्रम अथवा परियोजना,
कार्य, लाभािन्वतों और कार्य स्थल इत्यादि का अंकेक्षण।
वित्तीय अंकेक्षण से
धन के सही उपयोग का निरीक्षण होता है, जबकि सामाजिक अंकेक्षण से यह भी देखा जाता है कि उस धन के खर्च
का क्या असर हुआ।
सामाजिक अंकेक्षण व
वित्तीय अंकेक्षण एक दूसरे के पूरक हैं।
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