Saturday 6 April 2013



मुर्गी पालन ने बनाया आत्मनिर्भर

अनगड़ा प्रखंड के सुरसु पंचायत का सिंगारी गांव जहां डोमन बेदिया अपनी पत्नी बिलासी देवी  और अपने छः बच्चों के साथ रहते है। आमदनी इतनी की किसी तरह परिवार का पेट भर जाता। डोमन बेदिया के सर पर बेटी की शादी का बहुत बड़ा बोझ है जिसे सोच-सोच कर वे बहुत परेषान रहते  और परेषान हो भी क्यों नहीं बड़ी बेटी दशमी कुमारी जिसकी उम्र 25 वर्ष हो गई है और धन की कमी उसकी शादी की बहुत बड़ी रूकावट है। कमायी के नाम पर कृषि है वो भी सिर्फ पेट पालने के लिए। हां पूरा परिवार नरेगा की मजदूरी से जुड़ा हुआ है लेकिन नरेगा से मिलने वाली राषि भी केवल घर के मूलभूत जरूरतों को ही पूरा कर पाती है। डोमन बेदिया के छः बच्चों में चार बेटा और दो बेटियां है, जिन्हें वे खूब पढ़ाना चाहते है। लेकिन धन की कमी उनकी हर चाहत को पूरा करने में बाधक साबित हुई है। यहीं कारण है कि दषमी कुमारी ने सातवीं तक की पढ़ाई करके बीच में ही छोड़ दी। बाकी बच्चे गांव के सरकारी विद्यालय में पढ़ाई कर रहें है। श्री बेदिया का सपना है कि बच्चों को उच्च षिक्षा दिलवाएं लेकिन पैसे की कमी को पूरा नही कर पाते । घर का बड़ा बेटा बुधराम बेदिया जो कि 28 वर्ष का हो चुका है वह भी अपने पिता और परिवार के लिए कुछ खास नही कर सकता  क्योंकि वह कुछ बोल नही पाता  वह गूंगा है। अपने पिता के लिए सिर्फ खेती में हाथ बटाता है। घर की इस स्थिति के कारण वे हर वक्त इसी सोच में डूबे रहते है कि आखिर अब बेटी की शादी कैसे होगी और कौन उनकी मदद करेगा?। ऐसे में उन्हें लगता है कि सिर्फ बच्चों की पढ़ाई से ही उनकी हालत सुधरेगी और वे परिवार के लिए कुछ अच्छा कर पाएंगें साथ ही अपनी बेटी की अच्छी जगह शादी कर पाएंगें। घर की हालत को देखकर 20 वर्षीय रामनंदन बेदिया ने पढ़ाई को छोड़कर पलायन कर लिया और अब वह महाराष्ट्र में रहता है। लगभग तीन-चार महीनों में उसने सिर्फ पांच हजार रूपए ही घर भेजे हैं जिससे डोमन बेदिया के लिए शादी जैसी बड़ी बात सोचना भी मुष्किल है। घर की सारी स्थिति को डोमन बेदिया का 19 वर्षीय बेटा सुधीर बेदिया चुपचाप देखता जा रहा था उसने मन ही मन ठान लिया कि वह घर में ही रहकर अपने पिता को हर वो खुषी देगा। वह बहन की शादी भी करेगा और पढ़ायी के सपने को भी पूरा करेगा। सुधीर बेदिया ने अपने घर को संभालने का बीड़ा अपने कंधे पर उठाया और सोसाइटी फॉर रूरल इडंस्ट्रीलाईजेषन(एसआरआई) का हाथ थामा। सेंटर फॉर वर्ल्ड सॉलिडेरिटी ने सुधीर बेदिया को मूर्गी पालन के तकनीकी गुर सिखाए और कौषल क्षमता को बढ़ाकर उसे आत्मनिर्भर होने का रास्ता बताया। हलांकि परिवार ने मूर्गियों को पहले पाला था लेकिन व्यावसायिक तौर पर इसका इस्तेमाल नही किया गया था और ना ही मूर्गी पालन का उनके पास कोई तकनीकी ज्ञान था। डोमन बेदिया को कभी यह अंदाजा नही था कि महज बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाला उनका यह बेटा परिवार की जिम्मेदारियां को इतनी गहराई से समझेगा और इतनी जल्दी घर की समस्याओं को दूर करने की पहल करेगा। सुधीर बेदिया के मूर्गी पालन की इस पहल से दुख के बादल छंटने का अंदेषा हो रहा था। सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडेरिटी(सीडब्ल्यूएस) और सोसाइटी फॉर रूरल इंडस्ट्रीलाईजेषन(एसआरआई) के लोगो ने सुधीर बेदिया को एक महीने का प्रषिक्षण दिया और बताया कि कैसे मूर्गियों को कुषलता पूर्वक पाला जाता है। सुधीर बेदिया को मूर्गी पालन के तकनीक से अवगत कराया गया उन्हें बताया गया कि कैसे चूजों को बिमारी से दूर रखा जा सकता है, उन्हें मरने से कैसे बचाया जा सकता है और कैसे ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाया जा सकता है? मूर्गियों के खाने के बारे में भी जानकारी दी गई और देखते ही देखते बेदिया परिवार की जिंदगी में खुषियां लौटने लगी। सुधीर बेदिया ने अपने घर के एक कमरे को ही पाल्ट्री शेड का रुप देकर 200 चूजों के साथ मूर्गी पालन शुरू कर दिया और इस चरण में सिर्फ 15 प्रतिषत मूर्गियां बर्बाद हुई। सुधीर ने मूर्गी पालन के पहले चरण में 3000 रूप्ए का फायदा कमाया। इस कमायी से सुधीर बेदिया काफी उत्साहित हुए और पूरे लगन और मेहनत के साथ मूर्गी पालन में जुड़ गए। साथ ही दूसरे चरण में 400 चूजों को पाला जिसमें मात्र तीन प्रतिषत चूजोें की बर्बादी हुई और 13,000 रूप्ए का लाभ मिला। सुधीर बेदिया की इस सफलता को देखकर उसके पिता डोमन बेदिया को भी यकीन हो चला है कि वे बहुत जल्द ही अपनी बेटी की शादी किसी अच्छे घर में कर पाएंगें। वहीं इस गांव के साथ-साथ अगल-बगल के गांव के लोग भी सुधीर बेदिया से प्रभावित हुए है। यह सुधीर बेदिया की पहल और मेहनत ही है कि इसने अपने परिवार को मुसीबत से निकाला है और सोसाइटी फॉर रूरल इंडस्ट्रीलाईजेषन(एसआरआई) के सहयोग और सुधीर की मेहनत का ही कमाल है कि आसपास के बाजार में उसके उत्पाद की मांग जोर-शोर से बढ़ी है। अच्छी बात यह भी है कि सुधीर के इस मूर्गी पालन में संलग्न होने से केवल परिवार की आर्थिक स्थिति में ही सुधार नहीं हुआ है बल्कि उसने अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए अपने पढ़ाई का भी जारी रखा है। उसने अमंत अली इंटर कॉलेज बुंडू से इस वर्ष बारहवीं की परीक्षा दिया है। सुधीर का कहना है कि वह कभी भी पढ़ाई नही छोड़ेगा क्योंकि इससे मेरे व्यवसाय को भी नया रास्ता मिलेगा,खुद ही निर्णय लेने में सक्षम हो सकेगा और अपने पिताजी की इच्छा को भी पूरा कर पाएगा। सुधीर बेदिया मूर्गी पालन के तीसरे चरण में 400 चूजों को पाल रहा है और उम्मीद है कि मूर्गियों का मृत्युदर भी कम होगा । इस चरण के उत्पादन से लगभग 20,000 रूपए लाभ कमाने का अनुमान लगाया जा रहा है। सुधीर बेदिया कहते है कि मूर्गी पालन ने उसे और उसके परिवार को एक नई दिषा दी है। वह इसे एक व्यावसायिक रूप देना चाहता है। मूर्गी पालन ने उसे आर्थिक मजबूती ही नहीं दी बल्कि उनके पिता के चेहरे पर हंसी लौटाई है और उनके चिंता को दूर करने की कोषिष की है। सुधीर बेदिया अपने इस व्यवसाय को विस्तृत रूपदेने के लिए एक पाल्ट्री शेड का निर्माण करना चाहते हैं और इसके लिए बैंक के माध्यम से लोन लेने की योजना बनाई जा रही है। सोसाइटी फॉर रूरल इंडस्ट्रीलाईजेषन(एसआरआई) और सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडेरिटी(सीडब्ल्यूएस) की ओर से सुधीर बेदिया को लगारतार प्रषिक्षण दिया जा रहा है। प्रषिक्षण के अलावा भी उन्हें अन्य सहयोग दिए जा रहें है। इनकी सफलता को देखते हुए अन्य लोग भी मूर्गी पाल रहें है।
तकनीकी मार्गदर्षन से कम किया जा सकता है मृत्यु दर
सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडेरिटी(सीडब्ल्यूएस) जमषेदपुर के प्रोग्राम ऑफिसर हिमाद्री बनर्जी कहते है कि उनकी संस्था की ओर से मूर्गी पालन के लिए लगातार प्रषिक्षण दिए जा रहें है। इसके अलावा  चूजों के लिए ‘‘वाटर किडर‘‘  एवं मूर्गीयों के लिए खाना भी उपलब्ध कराया जाता है। सुधीर बेदिया की कड़ी मेहनत को देखते हुए संस्था ने 100 चूजे और अन्य सामग्रियां दी गई। किसानों को हमेषा नियमित रूप से प्रषिक्षण, तकनीकी मार्गदर्षन एवं सहयोग दिया जाता है। मूर्गी पालन के सहयोग एवं सहायता के लिए हमारी पूरी टीम कार्य कर रही है। वे नियमित रूप से चूजों की बिमारियों की रोकथाम एवं उसके मृत्यु दर को कम करने के लिए लगातार निरिक्षण करते है। चूजे सामान्यतः एक महीने में बेचने के लायक तैयार हो जाता है। हमारी टीम चूजों की टीका और खाने के संबंध में हमेषा किसानों को बताते है। शेड को साफ रखने की जानकारी भी दी जाती हेै। झारखंड राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में आय सृजन के लिए पषुपालन एक मुख्य स्त्रोत है। प्रदेष में अंडे और मांस की मांग, पूर्ति की तुलना से कहीं ज्यादा है। वर्ष 2010-11 की एक वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में वर्ष 2008-09 में अंडों का कुल उत्पादन 717 मिलियन था जो मांग से 37.27 प्रतिषत कम था वहीं मांस की उपलब्धता 441.67 लाख किलोग्राम थी जो 32.77 प्रतिषत कम थी। मतलब साफ है कि प्रदेष में मांस और अंडे की पूर्ति की कमी है और ग्रामीण क्षेत्र के युवा इसे आय का स्त्रोत बना सकते है। सोसाइटी फॉर रूरल इंडस्ट्रीलाईजेषन(एसआरआई) और सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडेरिटी (सीडब्ल्यूएस) इस उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए रांची जिला के अनगड़ा प्रखंड में जोरों से कार्य कर रही है। खासकर मूर्गी एवं सुकर पालन को प्रोत्साहन मिल रहा है और इसके लिए पाल्ट्री के पांच इकाई में 100-100 मूर्गियों का पालन किया गया और उसे स्थानीय बाजार में बेचा गया। वर्ष 2012 में मूर्गी पालन को एक समूह के माध्यम से 17375 किलोग्राम बेचा गया और 1,31,366 रूप्ए की कमायी की। वर्तमान में लगभग 24 इकाई में मूर्गी एवं सुकर पालन का काम चल रहा है। उम्मीद है कि हमारा यह प्रयास और किसानों की मेहनत मूर्गी पालन को एक नई दिषा देगी और साथ ही साथ अनेक परिवार को आत्मनिर्भर बनाएगा। नाबार्ड और सरकार दोनो इस उद्योग को सहयोग दे रही है और इसे सफल बनाने के लिए तकनीकी मार्गदर्षन अत्यंत आवष्यक है।



 पंचायतों को  प्राथमिक षिक्षा से संबंधित अधिकार 


झारखंड सरकार ने पंचायतों को मानव संसाधन विकास विभाग के तहत प्राथमिक षिक्षा से संबंधित अधिकार दिये हैं। पंचायत राज अधिनियम 2001 के प्रावधानों के आलोक मे प्राथमिक षिक्षा के संदर्भ में कोश, कार्य और कर्मियों का पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित करने का निर्णय निम्न रूप से सरकार ने लिया है।
कार्य - ग्राम पंचायत विद्यालयो का एक रजिस्टर तैयार करेगी तथा उसका अनुरक्षण करेगी आर प्राथमिक विद्यालयों के मानव संसाधनों तथा उनमें उपलब्ध सुविधाओं का एक डाटाबेस तैयार करेगी। ग्राम पंचायत विद्यालय प्रबंध समिति की भागीदारी से सर्व षिक्षा अभियान योजना सहित षिक्षा योजनाएं तैयार करेगी। नये प्राथमिक विद्यालयों के लिए भूमि का चयन करेगी तथा विद्यालय प्रबध समिति के सहयोग से उन पर भवन बनायेगी और उनका तथा विद्यमान विद्यालयो का सरक्षण करेगी। ग्राम पंचायत सभी बच्चों का नामांकन सुनिष्चित करीगी, प्राथमिक षिक्षा को बीच में ही छोड़ देने की घटनाओं को रोकने का प्रयास करेगी, विद्यालय प्रबंध समिति के माध्यम से लाभुकों का चयन करेगी और छात्रवृत्ति बांटेगी, पढ़ाने और सीखने के सामग्री का वितरण करेगी, मध्याह्न भोजन बनाने और उसे वितरित करने के काम का पर्यवेक्षण करेगी तथा प्राथमिक स्कूलों के सामाजिक ऑडिट और सर्व षिक्षा अभियान एवं प्रौढ़ षिक्षा के लिए ग्राम सभाओं का आयोजन करेगी।
2. प्रखंड स्तरीय पंचायत समितियां ग्राम स्तर के आंकड़ों का संकलन करेगी एवं सर्व षिक्षा अभियान की प्रखंड स्तरीय योजना तैयार करेंगी। वे अपने क्षेत्रों में सर्व षिक्षा अभियान तथा प्रौढ़ षिक्षा के कार्यान्वयन का पर्यवेक्षण करेंगी। वे ऐसे क्षेत्रों का चयन करेंगी, जहां विद्यालय नहीं है और वहां विद्यालय की सुविधा सुनिष्चित करंेगी तथा षिक्षा बीच में ही छोड़ देने वाले छात्र/छात्राओं का पहचान कर उनहे पुनः विद्यालय वापस लायेंगी।
3. जिला पंचायत, पंचायत समितियो के आंकड़ों को समेकित करेगी, सर्व षिक्षा अभियान योजनाओ सहित जिला योजनाएं तैयार करेगी, सामाजिक ऑडिट के परिणामों पर कार्रवाई करेगी और जिले में प्राथमिक षिक्ष, अभियान तथा प्रौढ़ षिक्षा संबंधी कार्यकलापों का पर्यवेक्षण करेगी।
4. पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित पदाधिकारी अपने क्षेत्राधीन प्रारंभिक विद्यालयों ाक निरीक्षण कर कसेंगे एवं इनकी निरीक्षण टिप्पणी क आलोक में यथा आवष्यकता विद्यालय प्रबंध समिति द्वारा आवष्यक कार्रवाई की जायेगी।
कार्मिक - प्रखड षिक्षा प्रसार पदाधिकारी पंचायत समिति द्वारा आयोजित षिक्षा कार्यों एवं कार्यक्रमों से संबंधित समीक्षा बैठकों मे भाग लेंगे एवं समिति को वांछित जानकारी उपलब्ध करायेंगे।
2.जिला षिक्षा अधीक्षक अपने जिले की जिला परिशद् के द्वारा आयोजित षिक्षण कार्यों एवं कार्यक्रमों से ंसबंधित समीक्षा बैठकों मे भाग लेंगे एवं परिशद् को वांछित जानकारी उपलब्ध करायेगे।
3.प्रत्येक जिला परिशद् अपने क्षेत्राधिकार के अधीने कार्यरत जिला षिक्षा अधीक्ष्ज्ञक एवं अनुमंडल षिक्षा पदाधिकारी के कार्यों के सबंध में कोई भी प्रतिवेदन राज्य सरकार को भेज सकेगी तथा आवष्यक अनुषंसा कर सकेगी।
4. प्राथमिक विद्यालयो क षिक्ष्ज्ञक क नियंत्रण प्राधिकार संबंधित ग्राम पंचायत होी और वे ग्राम पंचायत के अधीने रहते हएु अपने कार्यो का निश्पादन करेंगे मानव संसाधन विकास विभाग उनका संवर्ग नियंत्रक प्राधिकार बना रहेगा
5. प्राथमिक विद्यालयों के पारा षिक्षक के नियंत्रक प्राधिकार संबंधित ग्राम पंचायत होगी और सभी पारा षिक्षक ग्राम पंचायत के अधीन रहते हुए अपने कार्यों का निश्पादन करेंगे।
6. प्राथमिक विद्यालयो के षिक्षकों के रिक्त पदों को भरने के लिए आवष्यक कार्रवाई करने का उत्तरदायित्व मानव संसाधन विकास विभाग के संवर्ग नियंत्रक/नियुक्ति पदाधिकारी/सक्षम प्राधिकार पर होगा।
7. सेवानिवृत्ति, निलंबन, त्याग पत्र आदि क परिणाम से षिक्ष्ज्ञकों के रिक्त हुए पदों को भरने का दायित्व मानव संसाधन विकास विभग/ संबंधित प्राधिकार का होगा।
8.प्राथमिक विद्यालयों के षिक्ष्ज्ञकों की सेवा की षर्ते/लाभ वही रहेंगे, जो कि ग्राम पंचायत को उकनी सेवा सौंपने से पूर्व लागू नियमो के अनुसार थे।
9.प्राथमिक विद्यालयो के षिक्षकों की उपस्थिति का प्रमाणन, छुट्टियों की मंजूरी और यात्रा कार्यक्रमों का अनुमोदन ग्राम पंचायत के मुखिया द्वारा किया जायेगा।
10. प्राथमिक विद्यालयो के पारा षिक्षकों की उपस्थिति का प्रमाणन ग्राम पंचायत के मुखिया द्वारा किया जायेगा।
11. ग्राम पंचायत अपने क्षेत्राधीन प्राथमिक विद्यालय के षिक्षकों को लघु दंड देने की अनुषंसा जिला षिक्षा अधीक्ष्ज्ञक से कर सकेगी।
ग. कोश-1. प्राथमिक विद्यालयों की प्रबंध समिति को हस्तांतारित कोश पंचायती राज संस्थाओं द्वारा पर्यवेक्षित होंगे।
2.स्ािानांतरित कार्य कलापों/विशयों से संबंधित कार्य करते समय पंचायती राज संस्थाएं झारखंड सरकार एवं भारत सरकार द्वारा जारी किये गये वित्तीय नियमों और निर्देषाो/ दिषा-निर्देषों का अनुसरण करेंगी।
3.विभाग प्रमुख/निकासी एव व्ययन पदाधिकारी स्ािानांतरित कर्मचारियों के वेतन और भत्ते आहरित करना जारी रखेंगे। स्ािानांतरित कर्मचारियों के वेतन तथा भत्ते पूर्वानुसार उसी खाते से आहरित किये जाते रहेंगे।
4.प्रषासी विभाग द्वारा युनाईटेड फंड के रूप् में प्राथमिक षिक्षा की राज्य प्रयोजित योजनाओ के योजना बजट की राषि का न्यूनतम 5 प्रतिषत राषि, जो निर्धारित उद्व्यय क अंतर्गत होगी, जिला परिशद् को उपलब्ध करायी जायेगी। इस कोश से कौन-कौन सी योजनाएं ली जा सकेंगी, की रूप रेखा प्रषासी विभाग द्वारा निर्धारित की जायेगी। इस राषि का उपबंध, आवंटन एवं निकासी आदि की प्रक्रिया वित्त विभाग के परामर्ष से निर्धारित की जायेगी।





दो लाख से ज्यादा के कुएं में एक बूंद पानी नहीं


मनरेगा में बरती जा रही है अनियमितता

केंदुआ पंचायत में सोशल ऑडिट पर जनसुनवाई

मनरेगा में धांधली किस कदर बरती जा रही है, यह देखना है, तो पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड केंदुआ पंचायत के वनपोखरियों में देखी जा सकती है। पैक्स-मनरेगा के फ्लैगिष्ाप प्रोग्राम के तहत झारखंड के 10 जिलों में मनरेगा का सोष्ाल ऑडिट कराया जा रहा है। राश्ट्रीय स्तर की गैर स्वयंसेवी संस्था एफिकोर एवं भारतीय ज्ञान-विज्ञान समिति द्वारा केंदुआ प्रखंड के अंतर्गत मनरेगा योजनाओं की सोष्ाल ऑडिट पर जनसुनवाई की गयी। यह जन सुनवाई केंदुआ पंचायत के वनपोखरिया में 9 मार्च को संपत्ति मूल्यांकन द्वारा किया गया। ऑडिट में पैक्स के 20 से ज्यादा सोष्ाल ऑडिट फैसिलेटर ने संपत्ति का मूल्यांकन किया, जिन्हें आधुनिकतम रूप से प्रिष्ाक्षण किया गया था। आठ मार्च को आम सभा और नौ मार्च को सोष्ाल आडिट में डंगरापारा, ष्ाहरग्राम और केंदुआ पंचायत में हो रहे मनरेगा कार्यों का संपत्ति मूल्यांकन किया गया। सोष्ाल ऑडिट में तीनों पंचायत के सैकड़ों ग्रामीणों ने भाग लिया और प्रत्येक पंचायत के मुखिया व वार्ड सदस्य भी ष्ाामिल हुए।

लाभुकों के पास नहीं है जॉब कार्ड
पहाड़िया बहुल इन पंचायतों में मनरेगा में अनियमितता चरम पर नजरी आयी। इसके साक्ष्य के रूप में सोष्ाल फैसिलेटर के पास संपत्ति मूल्यांकन का कॉपी भी मौजूद है। ऑडिट में पाया गया कि केंदुआ पंचायत के वनपोखरिया में मनरेगा के तहत तीन कूप खुदाई की योजनाएं ली गयी। कूप योजनाएं 1,40,000 से 2,60,000 के बीच थी। इन दो कूपों में एक बूंद पानी तक नहीं था। यानि कूप योजनाओं का उद्देष्य पहाडिया समुदायों को पूरा नहीं कर पा रहा। ग्रामीणों का कहना था कि कूप में निर्धारित दर से मजदूरी भी नहीं मिली, मनरेगा के तहत 122 के बदले 100 रुपये मजदूरी दर दी गयी, जो मनरेगा के नियमों का सीधे तौर पर उल्लंघन करता है। भारतीय ज्ञान-विज्ञान भारती के कार्यक्रम समन्वयक व सीनियर सोष्ाल फैसिलेटर रामजीवन पहाड़िया कहते हैं कि लाभुक के पास जॉब कार्ड बनने के बाद मात्र दष्र्ान को मिले। कार्ड बनने के बाद जॉब कार्ड ग्राम रोजगार सेवक और ठीकेदार ने उनसे ले लिया। वनपोखरिया में 52 से 54 परिवारों में 40-42 परिवारों के पास जॉब कार्ड हैं। ये सभी जॉब कार्ड ठीकेदार व ग्राम रोजगार सेवक के पास है। केंदुआ पंचायत के ग्राम प्रधान नुड़की पहाड़िया के अनुसार जॉब कार्ड की मांग कई किये जाने के बाद भी स्थानीय ठीकेदार ने आज तक उन्हें नहंी दिया। ठीकेदार व रोजगार सेवक समय-समय पर कई दस्तावेजों पर हस्ताक्षर व ठेपा भी करा जाते हैं। श्री पहाडिया कहते हैं कि मजदूरों को जॉब कार्ड के अनुसार अब तक मात्र 100 में 30 दिनों का ही काम दिया गया, बाकी 70 दिनों का लाभुक भुगतान नहीं जानते, जबकि मनरेगा एक्ट के तहत 100 दिनों का भुगतान सरकार द्वारा लाभुक को करना है। ठीकेदार द्वारा समय-समय पर किसी न किसी बहाने से कई दस्तावेजों में हस्ताक्षर भी करा लेते हैं। अगर अवैध मजदूरी हुई है, तो लाखों रुपये सरकार के खाते से अवैध निकासी हो गयी है। अगर हम मात्र 1 जॉब कार्ड की गणना करें, (100 में मात्र 30 दिनों का काम मिला) तो 70 दिनों का 120 रुपये के हिसाब से 8400 रुपये का सालाना भुगतान गैर वाजिब ढंग से रोजगार सेवक और ठीकेदार मिलकर हजम कर जाते हैं। अगर 40 जॉब कार्ड की बात करें, तो 3,36,000 का अवैध निकासी कर एक वश्र्ा में कर ली गयी है। अगर मजूदरों की अवैध निकासी हुई है, तो पाकुड़ जिले में मनरेगा के तहत सबसे बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।
पैक्स-मनरेगा के तहत जब मनरेगा का सोष्ाल ऑडिट के दौरान उपविकास आयुक्त गौरीष्ांकर मिंज से दस्तावेज की मांग की गयी, लेकिन उन्होंने देने से इनकार कर दिया। इसके बाद एफिकोर व भारत ज्ञान-विज्ञान समिति ने सामाजिक अंकेक्षण के तहत संपत्ति मूल्यांकन व ग्राम सभा की प्रक्रिया अपनाते हुए अंकेक्षण के कार्यों को अंजाम दिया। हिरणपुर प्रखंड के अधिकारी दबे जुबान में कहते हैं कि सोष्ाल ऑडिट जो भी संस्था करें, उसे दस्तावेज नहीं दिये जायें।
35 के जगह 28 फीट ही गहरी है सिंचाई कूप
वनपोखरिया में अगर योजनाओं की बात करें, तो कादरू पहाड़िया, दामु पहाड़िया और मुड़की पहाड़िया के नाम से सिंचाई कूप का निर्माण कराये गये हैं। योजना के अनुसार कूप निर्माण की खुदाई 35 फीट होनी चाहिए जबकि कूप की खुदाई मात्र 28 फीट ही किया गया। इन कूप निर्माण में सरकार के लाखों रुपये लगे हैं। एक कूप निर्माण में 1,40,000 रुपये की प्राक्कलित रािष्ा है।  एक बड़े कूप निर्माण में 2,60,000 की प्राक्कलित रािष्ा है। सोनिया पहाड़िया के कूप में मात्र साढ़े तीन फीट पानी मापा गया, जबकि नारान पहाड़िया और िष्ाबू पहाड़िया के कूप पूरी तरह सूखा था। मनरेगा के तहत इन योजनाओं की उपयोगिता नगण्य थी। दस्तावेजों के अनुसार ग्रामीण तथा कार्डधारी मजदूरों को 100 रुपये के दर से मजदूरी दी गयी।
बकरी वाला तालाब
वनपोखरिया में तालाब निर्माण की बात करें, तो यहां भी अनियमितता ही नजर आती है। कादरू पहाड़िया, दामु पहाड़िया और गुड़की पहाड़िया ने मनरेगा के तहत तालाब निर्माण की योजनाएं ली। ये सभी योजनाएं तालाब निर्माण के तहत कराये गये थे। इन तालाबों में एक बूंद भी पानी नहीं है। मछली पालन के स्थान पर इन तालाबों में बकरियां चल रही है। इस योजना में 122 रुपये के स्थान पर 100 रुपये की प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी का भुगतान किया गया। मनरेगा प्रावधान के अनुसार तालाब निर्माण के समय मनरेगा में किसी प्रकार की सुविधा पानी, छाया, पालना व मेडिकल किट की व्यवस्था नहंी किया गया था। मेट अर्जुन पहाड़िया ने बताया कि उन्हें मनरेगा एक्ट के प्रावधानों के बारे में जानकारी ही नहंी है।
जलकुंड योजना पूरी तरह फ्लॉप
वनपोखरिया में नौ पहाड़िया समुदायों को जलकुंड की योजना दी गयी। जिन्हें जलकुंड मिला, उनमें दामुदर पहाड़िया, दारिया, आदरो, दामु, दामु-2, सोनिया, िष्ाबू, साबरू और रूपाई पहाड़िया ष्ाामिल हैं। सोष्ाल ऑडिट के तहत संपत्ति मूल्यांकन में पाया गया कि इन जलकुंडों का कोई लाभ पहाड़िया समुदाय को नहीं मिल रहा है। जलकुंड में पानी की जगह पत्थर व पुआल का रख-रखाव किया जा रहा है। मनरेगा योजना के तहत प्रत्येक जलकुंड योजना की प्राक्कलित रािष्ा 18,000 रुपये है। मनरेगा याेजना के तहत जलकुंड से भी कोई लाभ नहीं लाभ नहीं मिल पा रहा है।
जमीन समतलीकरण का लाभ नहीं मिल रहा है पहाड़िया को
मनरेगा के तहत वनपोखरिया में भूमि समतलीकरण की सात योजनाएं ली गयी है। भूमि समतलीकरण के तहत प्रति एकड़ 45 हजार की प्राक्कलित रािष्ा है। इस योजना में भूमि समतलीकरण तो कर दिया गया, लेकिन पहाड़िया समुदाय के लोगों का कहना है कि समतलीकरण में मापदंडों का ख्याल नहीं रखा गया है। अब भी समतलीकरण के बावजूद गड्डे और भूमि का पठार है। ऐसे में वे किस प्रकार खेती करें,

वनपोखरिया का मामला गंभीर - मनरेगा आयुक्त
मनरेगा आयुक्त डॉ अरुण कुमार से जब इस संबंध में बात की गयी, तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की। डॉ कुमार ने कहा कि िष्ाकायत मिलने पर कार्रवाई की जायेगी। मामले की जांच की जायेगी। गड़बड़ी पकड़ी जाने पर कार्रवाई भी होगी। 

जागा गांव, परेशान अफसर

पाकुड़ से लौटकर विकास कुमार सिन्हा

गांव के लोग विकास के प्रति जागरूक हो रहे हैं। सरकारी योजनाओं की पाई-पाई की राशि का हिसाब सरकारी अधिकारियों से मांग रहे हैं। सरकार द्वारा संचालित किये गये मनरेगा सहित अन्य योजनाओं में खर्च का ब्योरा भी ग्रामीण मांग रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार उनके लिये मनरेगा योजना संचालित की है। सरकारी अधिकारी बिना बताये ही योजना बना रहे हैं। आम सभा में योजना स्थल के चयन के स्थान दूसरे कार्यस्थल पर योजनाओं का प्रतिपादन किया जा रहा है, जो सरकारी अधिनियम का उल्लंघन है। मनरेगा एक्ट के नियमों के अनुसार लाभुकों को भुगतान में भी धांधली बरती जा रही है। जॉब कार्ड ग्राम रोजगार सेवक और ठीकेदारों के पास जब्त है। मनरेगा एक्ट के अनुसार मजदूरी भुगतान भी नहीं हो पा रहा है। यह स्थिति पूरे झारखंड की है।


गुमला जिले अंतर्गत डुमरी के करनी पंचायत में मनरेगा योजनाओं में अनियमितता बरती गयी है। सोशल ऑडिट में जॉब कार्ड और मजदूरी भुगतान में भारी अनियमितता पायी गयी है। 45 लाभुकों को मात्र 40 दिन का ही काम मिला, बाकि 55 दिनों का न उन्हें काम मिला और न ही भुगतान। लाभुक मनबहल मुंडा कहते हैं कि मनरेगा में काम के दिलासे के कारण वह शहर नहीं गया, लेकिन यहां शहरों से भी स्थिति बदतर है। मनरेगा में 100 दिनों का न काम मिला और न ही काम किये गये 45 दिनों का पूरा भुगतान। अब हम क्या खायेंगे। मुखिया के बार-बार कहने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती। कुछ इसी तरह की कहानी हरि मुंडा, रोपन एक्का, रोहन एक्का और जेवियर तिकी की भी है। सोशल ऑडिट के दौरान जब मनरेगा एक्ट के बारे में जानकारी दी गयी, तो सभी लाभुक ग्राम रोजगार सेवक और मुखिया से हिसाब मांगने लगे। रोहन एक्का कहता है कि जब सरकार ने उनके लिए 100 दिनों के काम का कानून बनाया, तो ग्राम रोजगार सेवक उसे काम दिलाये, नहीं तो 100 दिनों की मजदूरी का भुगतान करें।
संताल परगना प्रमंडल में मनरेगा की स्थिति और भयावह है। पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड अंतर्गत केंदुआ पंचायत में वनपोखरिया गांव में मनरेगा के तहत कई योजनाएं ली गयी। यह सभी योजनाएं ग्रामसभा से निर्गत की गयी थी। वनपोखरिया में भूमि समतलीकरण के 7, जलकुंड के 9 तालाब निर्माण के 3 और सिंचाई कूप की 3 योजनाएं पास की गयी। मनरेगा के तहत कराये गये इन कार्यों में मजदूरी दर लाभुकों को काफी कम मिला। लाभुकों को मजदूरी दर 122 के बदले 100 रुपये ही भुगतान किया गया। वनपोखरिया गांव के लाभुकों से मनरेगा एक्ट के तहत मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया। लाभुकों को मात्र 100 में 30 से 40 दिनों का ही काम दिया गया, जो गैरकानूनी है। उन्हें 70 दिनों दिनों का भुगतान भी नहीं मिला। सिंचाई कूप में 35 फीट के स्थान पर मात्र 28 फीट ही गहराई की गयी, वस्तुत तीन में दो सिंचाई कूप सूख गये हैं। मात्र एक कूप से लोग पेयजल के लिए काम में ला रहे हैं। जलकुंड की भी यही स्थिति है। पानी व गहराई कम होने के कारण खेतों में सिंचाई कार्य नहीं किये जा रहे हैं। इतनी अनियमितता मनरेगा में बरती गयी है।
केंदुआ पंचायत के मुखिया मुड़की पहाड़िया कहते हैं कि वनपोखरिया में ग्राम रोजगार सेवक व ठीकेदारों से हिसाब मांगा जायेगा। पूरे पंचायत की यही स्थिति है। योजनाओं में अनियमितता बर्दाश्त नहीं की जायेगी। ग्राम रोजगार सेवक व प्रखंड विकास पदाधिकारी से लाभुकों के मस्टर रोल मांगा गया है। मस्टर रोल में ही लाभुकों के 70 दिन का हिसाब-किताब जांच की जायेगी। मनरेगा सामाजिक अंकेक्षण के जनसुनवाई के दौरान मुखिया मुड़की पहाड़िया कहते हैं कि मनरेगा के बारे में इतनी जानकारी हमें नहीं थी, जनसुनवाई के दौरान मनरेगा एक्ट के बारीकियों को समझने का मौका मिला। ग्राम प्रधान शिबू पहाड़िया कहते हैं कि ``हमारी योजनाओं को ही सरकारी अधिकारियों ने नहीं लूटा, बल्कि उन्होंने हम सबों के सपनों को ही लूट लिया, अब उन्हें एक-एक पाई का हिसाब देना होगा। मनरेगा के तहत सरकार ने हमें काम दिया है, हमें रोजगार दिया है, लेकिन ग्राम रोजगार सेवक एवं अन्य अधिकारियों ने मिलकर मनरेगा और हमारे सपनों को लूट लिया, अब उन्हें हिसाब देना होगा।''
मनरेगा के तहत संचालित योजनाओं का वित्तीय वष्र्ा 2012-13 से निगरानी रखी जायेगी। प्रत्येक येाजनाओं का कार्यस्थल के चयन में भी ध्यान रखा जायेगा। मनरेगा एक्ट के तहत कार्यस्थल पर मिलने वाले लाभुकों की सुविधाओं पर भी नजर रखी जायेगी। मेट को प्रशिक्षण भी दिलाया जायेगा, जिससे पंचायत में होने वाली योजनाओं में धांधली न हो और लोगों को सुविधाएं मिले।  
भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के कार्यक्रम समन्वयक एवं सीनियर सोशल ऑडिट फैसिलेटरर्स रामजीवन पहाड़िया कहते हैं सामाजिक अंकेक्षण से योजनाओं की सही रूपरेखा मालूम होती है। किस योजना में अनियमितता बरती गयी है, कौन सी योजना सही रूप से कार्यान्वयन किया गया है, लाभुकों को कितनी मजदूरी का भुगतान किया गया है, योजना स्थल का चयन में अनियमितता तो बरती नहीं गयी है, योजना स्थल पर मजदूरों को कौन-कौन सी सुविधा उपलब्ध करायी गयी ..... आदि अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी मिलती है। पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही योजना मूल्यांकन किया जाता है। इसमें पंचायत व जिला प्रशासन के अधिकारियों से भी सहयोग लिया जाता है। दस्तावेजीकरण के लिए जिला प्रशासन की भूमिका अहम है। श्री पहाड़िया अपने अनुभव बयां करते हैं कि केंदुआ पंचायत में वनपोखरिया का सोशल ऑडिट करते वक्त सभी टूल्स का इस्तेमाल किया गया। आम सभा कर योजनाओं की सही जानकरी ली गयी, मनरेगा मेट अर्जुन पहाड़िया और ग्राम प्रधान शिबू पहाड़िया को साथ में रखा गया। ग्राम प्रधान से महत्वूपर्ण जानकारियां ली गयी। विकास योजनाओं के चयन स्थल पर  जांच पड़ताल की गयी। केंदुआ पंचायत में भारी अनियमितता पायी गयी है। 
स्वयंसेवी संस्था एफिकोर के अनुपम नयन कहते हैं कि पैक्स-मनरेगा के तहत झारखंड के 10 जिलों में विभिन्न पंचायतों में सोशल ऑडिट कराया जा रहा है। मनरेगा के सामाजिक अंकेक्षण के दौरान कई अनियमितता पायी जाती है। सोशल ऑडिटर जनसुनवाई के दौरान ग्रामीणों को मनरेगा के बारे में बताया जाता है। साथ ही, भविष्य में ऐसी गलती न हो, इसके लिए मुखिया व अन्य पंचायत प्रतिनिधियों को सलाह दी जाती है।
हमारे सपनों को भी लूट लियाः ग्राम प्रधान
ग्राम प्रधान शिबू पहाड़िया कहते हैं कि ``हमारी योजनाओं को ही सरकारी अधिकारियों ने नहीं लूटा बल्कि उन्होंने हम सबें के सपनों को ही लूट लिया, अब उन्हें एक-एक पाई का हिसाब देना होगा। मनरेगा के तहत सरकार ने हमें काम दिया है, हमें रोजगार दिया है, लेकिन ग्राम रोजगार सेवक एवं अन्य अधिकारियों ने मिलकर मनरेगा और हमारे सपनों को लूट लिया, अब उन्हें हिसाब देना होगा।''
पंचायतों में दक्षता की कमीः गुरजीत, मनरेगा लोकपाल
मनरेगा लोकपाल श्री गुरजीत ने बताया कि पंचायतों में मनरेगा एक्ट के पालन को लेकर जो दक्षता होनी चाहिए, वह अब तक नहीं हो पायी है। पंचायत प्रतिनिधियों को मनरेगा की पूरी जानकारी नहीं है। मनरेगा एक्ट के तहत दिये गये प्रावधानों के बारे में जबतक जानकारी नहीं होगी, तबतक धांधली व अनियमितता होती रहेगी। विश्ोष्ाता मनरेगा का काम पंचायतों में ही होना है, ग्राम सभा के जरिये विकास योजनाओं का चयन किया जाता है। ऐसी स्थिति में पंचायतों को इस एक्ट की जानकारी हाेनी चाहिए। सरकार के स्तर पर मनरेगा में जो तैयारी होनी चाहिए थी वह अब तक नहीं हो पायी है। मांग के अनुसार विकास योजनाएं बननी चाहिए। इसमें सरकार में भी इच्छाश्ाक्ति की कमी है। झारखंड में सरकारी अधिकारी आज तक मनरेगा को योजना मानते हैं, जबकि मनरेगा एक्ट है। यह भारत सरकार द्वारा निर्मित कानून है। अगर मनरेगा को एक्ट के तहत पालन किया जाये, तो अनियमितता में कमी आयेगी। 
सरकार के पास विजन की कमीः बलराम
नरेगा वॉच के सदस्य व सामाजिक कार्यकर्ता श्री बलराम के अनुसार झारखंड सरकार में विजन की कमी के कारण मनरेगा के तहत संचालित विकास योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है। मनरेगा को लेकर सरकार ने आज तक नीति ही नहीं बनायी है। राज्य में 78000 सिंचाई कूप बनाये जाने थे, जिसमें अनियमितता ही नजर आती है। कूप के कार्यस्थल का चयन भी गड़बड़ी पायी गयी है। इतनी बड़ी संख्या में सिंचाई कूप के निर्माण होने से महिलाओं व विकलांगों को योजनाओं में श्ाामिल नहीं किया जा सका। बलराम के अनुसार योजना ऐसी बनायी जानी चाहिए, जिससे आम लोगों को लाभ मिले। झारखंड में जॉब कार्ड की भी अजीबोगरीब स्थिति है। पाकुड़ जैसे जिलों में लाभुकों ने आज तक जॉब कार्ड देखा ही नहीं है। जॉब कार्ड बनने के बाद ग्राम रोजगार सेवक या फिर ठीकेदार के पास जब्त कर रखा गया है। बलराम के अनुसार जॉब कार्ड आज तक पाकुड़ के लाभुकों ने देखा ही नहीं है। पलामू में कुएं का चयन स्थल में भी गड़बड़ी पायी गयी है। राजधानी से सटे रातू प्रखंड में मनरेगा में कई अनियमितता मिल रही है।
हाशिये के लोगों को मिलेगा रोजगारः जॉनसन
मनरेगा का उद्देय हाश्िाये से लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना है। मनरेगा यानि महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत वर्ष के 365 में 100 दिनों का रोजगार दिया जाता है। यह योजना वष्र्ा 2006 से लागू है। इस योजना के तहत ग्रामीण आधारभूत संरचना के निर्माण के लिए उत्पादनकारी संपत्ति का निर्माण करेगा, जिससे ग्रामीण समुदाय को निर्धनता से लड़ने के लिए सश्ाक्त बनाया जा सकेगा। इसके तहत निर्धन ग्रामीण और भूमिहीन समुदाय का सामाजिक रूप से बहिष्कृत समुदाय, अनसूचित जाति/जनजाति और मुसिलम महिलाओं एवं विकलांगों के लिए और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। मनरेगा का कथन है कि यह अधिनियम लोगों का, लोगों द्वारा लोगों के लिए है। इस योजना के तहत मनरेगा के प्रारंभ होने से गरीबी, भूखमरी व निर्धनता पर रोक लगेगी। पलायन को रोकने में पैक्स-मनरेगा अभियान कारगर सिद्ध होगा। अगर मनरेगा में इन योजनाओं को सही रूप से क्रियान्वयन किया गया, तो हाश्िाये के लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा।
अनियिमतता की खबरें मनरेगा सेल तक पहुंचायें ः डॉ अरुण कुमार, मनरेगा आयुक्त
मनरेगा आयुक्त डॉ अरुण कुमार ने कहा कि मनरेगा में धांधली व अनियमितता की खबरें आती हैं। मनरेगा सेल में खबर मिलते ही दोिष्ायों पर कार्रवाई की जायेगी। ग्रामीण मनरेगा सेल से संपर्क कर सकते हैं। पाकुड़ के केंदुआ पंचायत के सोश्ाल ऑडिट रिपोर्ट पर उन्होंने कहा कि इस संबंध में जांच करायी जायेगी। जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई की जायेगी।
मनरेगा में मात्र 60 फीसदी ही खर्च हुई राशिः जयराम रमेश
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंंत्री जयराम रमेश्ा का मानना है कि झारखंड में मनरेगा बजट का मात्र 60 फीसदी ही राश्िा खर्च की गयी है। वर्ष 2012-13 में 760 लाख लोगों को मनरेगा के तहत काम देने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन जनवरी तक मात्र 452 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सका है, जो कि मनरेगा का मात्र 60 फीसदी राश्िा ही खर्च की जा सकी है। निर्धारित राशि 1638 करोड. रुपये के मुकाबले मात्र 1052 करोड. रुपये खर्च हुई है।


12 लाख लोगों को ही मिला रोजगार
झारखंड में लाभुकों को नियमित समय पर मजदूरी नहीं दी जा रही है। 40 लाख के एवज में मात्र 12 लाख लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सका। चालू वित्तीय वष्र्ा में राज्य प्रश्ाासन ने 40 लाख 45 हजार 690 परिवारों को जॉब कार्ड दिया। इसके विपरित महज 12 लाख 12 हजार 876 परिवारों ने ही रोजगार की मांग की। इनमें से 34,530 परिवारों को ही सौ दिनों का काम मिला। अब तक देवघर के 3851 परिवारों ने काम पाया, जबकि पलामू इस मामले में फिसड्डी साबित हुई है। पलामू में महज 360 परिवारों को ही 100 से अधिक दिनों का रोजगार मिल सका है। राज्य सरकार से मिली रिपोर्ट के अनुसार चालू वित्तीय वष्र्ा में अनुसूचित जाति के 5,44,912, अनुसूचित जनजाति के 15,11,915, जबकि अन्य वर्गों के कुल 19,88,863 परिवारों को ही जॉब कार्ड जारी किया गया। इस अवधि में अनुसूचित जाति के लोगों को 49,69,607, अनुसूचित जनजाति के लोगां को 1,62,65,451 तथा अन्य वर्ग के लोगों को 1,87,29,359 दिनों का काम मिला।
कुछ तथ्य
फरवरी 2013 तक की रिपोर्ट पर आधारित
कुल लेबर बजट - 1638 करोड़
केंद्र की राश्िा 1484 करोड़
केंद्र ने अब तक दिया 581 करोड़
जारी हुए जॉब कार्ड - 40,45,690
लोगों ने मांगा काम -12,12,876
मिला काम - 12,05,244
मानव दिवस का सृजन - 3,99,64,417

अनियमितता को उजगार करता सामाजिक अंकेक्षण ः -
सामाजिक अंकेक्षण के महत्वपूर्ण टूल्स
समाजिक अंकेक्ष्ाण (सोश्ाल ऑडिट) ग्राम सभा की बैठकों में भी सामाजिक ऑडिट के सभी क्रियाकलापों की अनिवार्य रूप से समीक्षा की जानी चाहिए। सामाजिक अंकेक्षण से आये परिणाम को जनसुनवाइर् के तहत सभी को सुनाया जायेगा। अधिकारियों से प्रश्न पूछने, जानकारियां हासिल करने, खर्चों की जांच और निरीक्षण करने, अपने अधिकारों की जांच-पड़ताल करने, कामों का चुनाव किये जाने, ग्रामीणों, कमर्र्चारियों व अधिकारियों एवं पंचायत प्रतिनिधियों के समक्ष योजनाओं का मूल्यांकन कर व्यवहारत्मक व आलोचनात्मक ढंग से जनसुनवाई की जाती है। सामाजिक अंकेक्षण में लाभुकों को खुलकर अपनी बात रखने का हक है। जनसुनवाई को लेकर प्रमुख रूप से प्रचार-प्रसार करने की जरूरत है। सामाजिक अंकेक्षण के तहत कई आयाम भी हैं, जिन पर सामाजिक अंकेक्षण के दाैरान चर्चा की जाती है। इनमें काम की गणुवत्ता, काम के विविध आयाम, काम के विविध आयाम, स्थान का चुनाव, न्यून्तम मजदूरी का भुगतान किया गया या नहीं, क्या मजदूरी का समय पर भुगतान किया गया, क्या खरीदी गयी सभी चीजों का भुगतान हो गया, क्या काम के दौरान चौकसी समिति के पास कोई श्िाकायत आयी, जो श्िाकायत आयी उन पर क्या कार्रवाई की गयी, कार्यस्थल पर निर्धरित मानकों के हिसाब से सुविधाएं उपलबध करायी गयी या नहीं, परियोजना के लिए किस तरह की मरम्मती और रख-रखाव की जरूरत पड़ेगी, ग्राम पंचायत में विकास कार्यों से संबंधित के सामान्य मुद्दों को भी सामाजिक ऑडिट फोरम में दर्ज किया जाना चाहिए और उन पर चर्चा की जानी चाहिए, अधूरे कामों और इस्तेमाल नहीं की जा रही चीजों की सूची तैयार करनी चाहिए, मजदूरी भुगतान से संबंधित ब्यौरा उपलब्ध कराना और दस्तावेजों की रिकार्ड आदि पर चर्चा होनी चाहिए।  
सामाजिक अंकेक्षण में होते हैं दस्तावेजों की जांच ः-
सामाजिक अंकेक्ष्ाण में सभी दस्तावेज मौजूद होने चाहिए। मस्टर रोल का सारंश्ा पढ़कर सुनाया जाना चाहिए ताकि किसी तरह की कोई विकृत्ति न रह जाये, माप-पुस्ितका का सारांश्ा पढत्रकर सुनाया जाना जरूरी है, काम श्ाुरू होने से पहले, काम के दौरान ओर काम पूरा होने े बाद खींची गयी तस्वीरें सामाजिक ऑडिट फोरम के मौके पर सावर्जनिक रूप से उपलब्ध होनी चाहिए।
सात दिनों के अंदर हो मजदूरों का भुगतान -
मनरेगा एक्ट के अनुसार लाभुकों को मजदूरी भुगतान के बारे में स्पष्ट दिश्ाा-निर्देश्ा दिया गया है। मजदूरों को सात दिनों के भीतर मजदूरी का भुगतान किया गया है या नहीं। क्या पूर्व-निर्धारित स्थान और पूर्व-निर्धारित समय पर वेतन भुगतान किया गया था। नोटिस बोर्ड पर हाजिरी रजिस्टर की प्रतियां आदि चिपका कर भत्ते के भुगतान से संबंधित कोई श्िाकायत विचाराधीन है? क्या निर्धारित कोटे के हिसाब से महिलाओं को 33 प्रतिश्ात रोजगार आबंटित किये जा रहे हैं?, क्या रोजगार रोजगार आंबटन के लिए आवेदन प्राप्ति की तारीख पर आधारित रोस्टर प्रण्ााली का पालन किया जा रहा है या नहीं? मजदूरों को निवास स्थल से पांच किलोमीटर की दूरी पर काम दिया गया है नहीं । क्या मजदूरों को न्यूनतम वेतन के 10 प्रतिश्ात के बराबर अतिरिक्त राश्िा यातायात और आजीविका भत्ते के रूप् में दी जा रही है?
कामों की मंजूरी में पारदश्िर्ाता को जानें -
क्या प्रस्तावित कार्यों की सूची ग्रामसभा की बैठक में तैयार की गयी थी?
क्या तकनीकी आकलन तैयार करने के दौरान जूनियर इंजीनियर के गांव के निवासियों से सुझाव ली थी?
क्या परियोजनाओं की स्वीकृत सूची में से कामों को तय नियमों के हिसाब से ही चुना गया था?
क्या ग्राम पंचायत के इलाके में पिछले छह माह के दौरान स्वीकृत और लागू किये गये कामों के लिए स्वीकृत रािष्ा और वास्तविक व्यय का ब्यौरा पढ़ कर सुनाया गया था
क्या ग्राम पंचायत के नोटिस बोर्ड पर लिखे कामों की सूची को संश्ाोधित किया है ?

योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदश्िर्ाता ः -
क्या कार्य आदेश्ाों को निष्पक्ष्ा और पारदश्र्ाी ढंग से जारी किया गया और क्या उनके बारे में पर्याप्त प्रचार किया गया था?
क्या कार्यस्थल पर ऐसा कोई बोर्ड था, जिस पर संबंधित कार्य के लिए स्वीकृत राश्िा, काम के विविध आयाम आैर बाकी जरूरी जानकारियां दी गयी हों?
क्या काम श्ाुरू होने से पहले परियोजना बैठक बुला कर मजदूरों को काम और मजदूरी के दर बताने और सुनाने की जिम्मेवारी पूरी की?
ग्रामसभा सदस्यों के सवालों का जवाब देने के लिए उन सभी अधिकारियों को सामाजिक ऑडिट फोरम में जरूर आना चाहिए, जो क्रियान्वयन की प्रक्रिया से जुड़े रहे हैं।
फोरम के सारे प्रस्ताव और फैसले मतदान के आधार पर लिये जायेंगे, लेकिन जो लोग अल्पमत में हैं उनकी बात भी नोट जरूर की जानी चाहिए।
बैठक में की गयी बातें प्रत्येक मिनट्स एक निर्धारित प्रारूप में लिख्ाा जाना चाहिए और लिखने के लिए ऐसे व्यक्ति को चुना जाना चाहिए, जो क्रियान्वयन निकाय से जुड़ा हुआ नहीं हो। मिनट्स रजिस्टर पर बैठक श्ाुरू होने से पहले और बैठक खत्म होने के बाद सभी सहभागियों के हस्ताक्ष्ार अवश्य करा लेना चाहए।

ग्राम सभा में सामाजिक अंकेक्षण व आवश्यक प्राथमिकताएं -
सामाजिक अंकेक्षण के पूर्व सारी सूचनाएं उपलब्ध होनी चाहिए।
जांच व सत्यापन हेतु सभी सूचनाओं का सरलीकरण होना चाहिए ताकि लोग समझ सकें। सभी प्रपत्रों का जल्दी व आसानी से प्रस्तुतीकरण हो सके इस प्रकार तय किये जाने चाहिए।
ऐसा वातावरण तैयार होना चाहिए ताकि लोग बिना भय व संकोच के अपनी बात कह सकें।
स्ंाबंधित अधिकारियों को सामाजिक अंकेक्षण के समय उपस्थित रहकर सवालों के जवाब देना चाहिए।
सामाजिक अंकेक्षण के प्रस्तावों पर अनिवार्य रूप से कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
जानें सामाजिक अंकेक्षण के बारे में -
समाजिक अथवा लोक अंकेक्ष्ाण (सोश्ाल ऑडिट) किसी विश्ोष्ा योजना अथवा कार्य के सभी लेखों-जोखों का सोश्ाल ऑडिटर द्वारा जांच किया जाता है
कार्य की गुणवत्ता, उपलब्धियों और विश्ोष्ा कार्यक्रम अथवा परियोजना, कार्य, लाभािन्वतों और कार्य स्थल इत्यादि का अंकेक्षण।
वित्तीय अंकेक्षण से धन के सही उपयोग का निरीक्षण होता है, जबकि सामाजिक अंकेक्षण से यह भी देखा जाता है कि उस धन के खर्च का क्या असर हुआ।
सामाजिक अंकेक्षण व वित्तीय अंकेक्षण एक दूसरे के पूरक हैं।

आइये पंचायती राज के बारे में जानें



पंचायती राज का दर्शन ग्रामीण भारत की परंपरा और संस्कृति में गहरे जमा हुआ है। यह ग्राम स्तर पर स्वशासन की प्रणाली की व्यवस्था करता है; पर 1992 तक इसे कोई संबैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं था।
23 अप्रैल, 1993 भारत में पंचायती राज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मार्गचिन्ह था क्योंकि इसी दिन संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संबैधानिक दर्जा हासिल कराया गया और इस तरह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया गया था।
73वें संशोधन अधिनियम, 1992 में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं:
  • एक त्रि-स्तरीय ढांचे की स्थापना (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या मध्यवर्ती पंचायत तथा जिला पंचायत)
  • ग्राम स्तर पर ग्राम सभा की स्थापना
  • हर पांच साल में पंचायतों के नियमित चुनाव
  • अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण
  • महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण
  • पंचायतों की निधियों में सुधार के लिए उपाय सुझाने हेतु राज्य वित्ता आयोगों का गठन
  • राज्य चुनाव आयोग का गठन
73वां संशोधन अधिनियम पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में काम करने हेतु आवश्यक शक्तियां और अधिकार प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को अधिकार प्रदान करता है। ये शक्तियां और अधिकार इस प्रकार हो सकते हैं:
  • संविधान की गयारहवीं अनुसूची में सूचीबध्द 29 विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना और उनका निष्पादन करना
  • कर, डयूटीज, टॉल, शुल्क आदि लगाने और उसे वसूल करने का पंचायतों को अधिकार
  • राज्यों द्वारा एकत्र करों, डयूटियों, टॉल और शुल्कों का पंचायतों को हस्तांतरण
ग्राम सभा
ग्राम सभा किसी एक गांव या पंचायत का चुनाव करने वाले गांवों के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है।
गतिशील और प्रबुध्द ग्राम सभा पंचायती राज की सफलता के केंद्र में होती है। राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे:-
  • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार ग्राम सभा को शक्तियां प्रदान करें।
  • गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अवसर पर देश भर में ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए पंचायती राज कानून में अनिवार्य प्रावधान शामिल करना।
  • पंचायती राज अधिनियम में ऐसा अनिवार्य प्रावधान जोड़ना जो विशेषकर ग्राम सभा की बैठकों के कोरम, सामान्य बैठकों और विशेष बैठकों तथा कोरम पूरा न हो पाने के कारण फिर से बैठक के आयोजन के संबंध में हो।
  • ग्राम सभा के सदस्यों को उनके अधिकारों और शक्तियों से अवगत कराना ताकि जन भागीदारी सुनिश्चित हो और विशेषकर महिलाओं तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों जैसे सीमांतीकृत समूह भाग ले सकें।
  • ग्राम सभा के लिए ऐसी कार्य-प्रक्रियाएं बनाना जिनके द्वारा वह ग्राम विकास मंत्रालय के लाभार्थी-उन्मुख विकास कार्यक्रमों का असरकारी ढंग़ से सामाजिक ऑडिट सुनिश्चित कर सके तथा वित्तीय कुप्रबंधन के लिए वसूली या सजा देने के कानूनी अधिकार उसे प्राप्त हो सकें।
  • ग्राम सभा बैठकों के संबंध में व्यापक प्रसार के लिए कार्य-योजना बनाना।
  • ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए मार्ग-निर्देश/कार्य-प्रक्रियाएं तैयार करना।
  • प्राकृतिक संसाधनों, भूमि रिकार्डों पर नियंत्रण और समस्या-समाधान के संबंध में ग्राम सभा के अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा करना।
73वां संविधान संशोधन अधिनियम ग्राम स्तर पर स्व-शासन की संस्थाओं के रूप में ऐसी सशक्त पंचायतों की परिकल्पना करता है जो निम्न कार्य करने में सक्षम हो:
  • ग्राम स्तर पर जन विकास कार्यों और उनके रख-रखाव की योजना बनाना और उन्हें पूरा करना।
  • ग्राम स्तर पर लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना, इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, समुदाय भाईचारा, विशेषकर जेंडर और जाति-आधारित भेदभाव के संबंध में सामाजिक न्याय, झगड़ों का निबटारा, बच्चों का विशेषकर बालिकाओं का कल्याण जैसे मुद्दे होंगे।
73वें संविधान संशोधन में जमीनी स्तर पर जन संसद के रूप में ऐसी सशक्त ग्राम सभा की परिकल्पना की गई है जिसके प्रति ग्राम पंचायत जवाबदेह हो।