Saturday 6 April 2013


मुर्गी पालन ने बनाया आत्मनिर्भर

अनगड़ा प्रखंड के सुरसु पंचायत का सिंगारी गांव जहां डोमन बेदिया अपनी पत्नी बिलासी देवी  और अपने छः बच्चों के साथ रहते है। आमदनी इतनी की किसी तरह परिवार का पेट भर जाता। डोमन बेदिया के सर पर बेटी की शादी का बहुत बड़ा बोझ है जिसे सोच-सोच कर वे बहुत परेषान रहते  और परेषान हो भी क्यों नहीं बड़ी बेटी दशमी कुमारी जिसकी उम्र 25 वर्ष हो गई है और धन की कमी उसकी शादी की बहुत बड़ी रूकावट है। कमायी के नाम पर कृषि है वो भी सिर्फ पेट पालने के लिए। हां पूरा परिवार नरेगा की मजदूरी से जुड़ा हुआ है लेकिन नरेगा से मिलने वाली राषि भी केवल घर के मूलभूत जरूरतों को ही पूरा कर पाती है। डोमन बेदिया के छः बच्चों में चार बेटा और दो बेटियां है, जिन्हें वे खूब पढ़ाना चाहते है। लेकिन धन की कमी उनकी हर चाहत को पूरा करने में बाधक साबित हुई है। यहीं कारण है कि दषमी कुमारी ने सातवीं तक की पढ़ाई करके बीच में ही छोड़ दी। बाकी बच्चे गांव के सरकारी विद्यालय में पढ़ाई कर रहें है। श्री बेदिया का सपना है कि बच्चों को उच्च षिक्षा दिलवाएं लेकिन पैसे की कमी को पूरा नही कर पाते । घर का बड़ा बेटा बुधराम बेदिया जो कि 28 वर्ष का हो चुका है वह भी अपने पिता और परिवार के लिए कुछ खास नही कर सकता  क्योंकि वह कुछ बोल नही पाता  वह गूंगा है। अपने पिता के लिए सिर्फ खेती में हाथ बटाता है। घर की इस स्थिति के कारण वे हर वक्त इसी सोच में डूबे रहते है कि आखिर अब बेटी की शादी कैसे होगी और कौन उनकी मदद करेगा?। ऐसे में उन्हें लगता है कि सिर्फ बच्चों की पढ़ाई से ही उनकी हालत सुधरेगी और वे परिवार के लिए कुछ अच्छा कर पाएंगें साथ ही अपनी बेटी की अच्छी जगह शादी कर पाएंगें। घर की हालत को देखकर 20 वर्षीय रामनंदन बेदिया ने पढ़ाई को छोड़कर पलायन कर लिया और अब वह महाराष्ट्र में रहता है। लगभग तीन-चार महीनों में उसने सिर्फ पांच हजार रूपए ही घर भेजे हैं जिससे डोमन बेदिया के लिए शादी जैसी बड़ी बात सोचना भी मुष्किल है। घर की सारी स्थिति को डोमन बेदिया का 19 वर्षीय बेटा सुधीर बेदिया चुपचाप देखता जा रहा था उसने मन ही मन ठान लिया कि वह घर में ही रहकर अपने पिता को हर वो खुषी देगा। वह बहन की शादी भी करेगा और पढ़ायी के सपने को भी पूरा करेगा। सुधीर बेदिया ने अपने घर को संभालने का बीड़ा अपने कंधे पर उठाया और सोसाइटी फॉर रूरल इडंस्ट्रीलाईजेषन(एसआरआई) का हाथ थामा। सेंटर फॉर वर्ल्ड सॉलिडेरिटी ने सुधीर बेदिया को मूर्गी पालन के तकनीकी गुर सिखाए और कौषल क्षमता को बढ़ाकर उसे आत्मनिर्भर होने का रास्ता बताया। हलांकि परिवार ने मूर्गियों को पहले पाला था लेकिन व्यावसायिक तौर पर इसका इस्तेमाल नही किया गया था और ना ही मूर्गी पालन का उनके पास कोई तकनीकी ज्ञान था। डोमन बेदिया को कभी यह अंदाजा नही था कि महज बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाला उनका यह बेटा परिवार की जिम्मेदारियां को इतनी गहराई से समझेगा और इतनी जल्दी घर की समस्याओं को दूर करने की पहल करेगा। सुधीर बेदिया के मूर्गी पालन की इस पहल से दुख के बादल छंटने का अंदेषा हो रहा था। सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडेरिटी(सीडब्ल्यूएस) और सोसाइटी फॉर रूरल इंडस्ट्रीलाईजेषन(एसआरआई) के लोगो ने सुधीर बेदिया को एक महीने का प्रषिक्षण दिया और बताया कि कैसे मूर्गियों को कुषलता पूर्वक पाला जाता है। सुधीर बेदिया को मूर्गी पालन के तकनीक से अवगत कराया गया उन्हें बताया गया कि कैसे चूजों को बिमारी से दूर रखा जा सकता है, उन्हें मरने से कैसे बचाया जा सकता है और कैसे ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाया जा सकता है? मूर्गियों के खाने के बारे में भी जानकारी दी गई और देखते ही देखते बेदिया परिवार की जिंदगी में खुषियां लौटने लगी। सुधीर बेदिया ने अपने घर के एक कमरे को ही पाल्ट्री शेड का रुप देकर 200 चूजों के साथ मूर्गी पालन शुरू कर दिया और इस चरण में सिर्फ 15 प्रतिषत मूर्गियां बर्बाद हुई। सुधीर ने मूर्गी पालन के पहले चरण में 3000 रूप्ए का फायदा कमाया। इस कमायी से सुधीर बेदिया काफी उत्साहित हुए और पूरे लगन और मेहनत के साथ मूर्गी पालन में जुड़ गए। साथ ही दूसरे चरण में 400 चूजों को पाला जिसमें मात्र तीन प्रतिषत चूजोें की बर्बादी हुई और 13,000 रूप्ए का लाभ मिला। सुधीर बेदिया की इस सफलता को देखकर उसके पिता डोमन बेदिया को भी यकीन हो चला है कि वे बहुत जल्द ही अपनी बेटी की शादी किसी अच्छे घर में कर पाएंगें। वहीं इस गांव के साथ-साथ अगल-बगल के गांव के लोग भी सुधीर बेदिया से प्रभावित हुए है। यह सुधीर बेदिया की पहल और मेहनत ही है कि इसने अपने परिवार को मुसीबत से निकाला है और सोसाइटी फॉर रूरल इंडस्ट्रीलाईजेषन(एसआरआई) के सहयोग और सुधीर की मेहनत का ही कमाल है कि आसपास के बाजार में उसके उत्पाद की मांग जोर-शोर से बढ़ी है। अच्छी बात यह भी है कि सुधीर के इस मूर्गी पालन में संलग्न होने से केवल परिवार की आर्थिक स्थिति में ही सुधार नहीं हुआ है बल्कि उसने अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए अपने पढ़ाई का भी जारी रखा है। उसने अमंत अली इंटर कॉलेज बुंडू से इस वर्ष बारहवीं की परीक्षा दिया है। सुधीर का कहना है कि वह कभी भी पढ़ाई नही छोड़ेगा क्योंकि इससे मेरे व्यवसाय को भी नया रास्ता मिलेगा,खुद ही निर्णय लेने में सक्षम हो सकेगा और अपने पिताजी की इच्छा को भी पूरा कर पाएगा। सुधीर बेदिया मूर्गी पालन के तीसरे चरण में 400 चूजों को पाल रहा है और उम्मीद है कि मूर्गियों का मृत्युदर भी कम होगा । इस चरण के उत्पादन से लगभग 20,000 रूपए लाभ कमाने का अनुमान लगाया जा रहा है। सुधीर बेदिया कहते है कि मूर्गी पालन ने उसे और उसके परिवार को एक नई दिषा दी है। वह इसे एक व्यावसायिक रूप देना चाहता है। मूर्गी पालन ने उसे आर्थिक मजबूती ही नहीं दी बल्कि उनके पिता के चेहरे पर हंसी लौटाई है और उनके चिंता को दूर करने की कोषिष की है। सुधीर बेदिया अपने इस व्यवसाय को विस्तृत रूपदेने के लिए एक पाल्ट्री शेड का निर्माण करना चाहते हैं और इसके लिए बैंक के माध्यम से लोन लेने की योजना बनाई जा रही है। सोसाइटी फॉर रूरल इंडस्ट्रीलाईजेषन(एसआरआई) और सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडेरिटी(सीडब्ल्यूएस) की ओर से सुधीर बेदिया को लगारतार प्रषिक्षण दिया जा रहा है। प्रषिक्षण के अलावा भी उन्हें अन्य सहयोग दिए जा रहें है। इनकी सफलता को देखते हुए अन्य लोग भी मूर्गी पाल रहें है।
तकनीकी मार्गदर्षन से कम किया जा सकता है मृत्यु दर
सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडेरिटी(सीडब्ल्यूएस) जमषेदपुर के प्रोग्राम ऑफिसर हिमाद्री बनर्जी कहते है कि उनकी संस्था की ओर से मूर्गी पालन के लिए लगातार प्रषिक्षण दिए जा रहें है। इसके अलावा  चूजों के लिए ‘‘वाटर किडर‘‘  एवं मूर्गीयों के लिए खाना भी उपलब्ध कराया जाता है। सुधीर बेदिया की कड़ी मेहनत को देखते हुए संस्था ने 100 चूजे और अन्य सामग्रियां दी गई। किसानों को हमेषा नियमित रूप से प्रषिक्षण, तकनीकी मार्गदर्षन एवं सहयोग दिया जाता है। मूर्गी पालन के सहयोग एवं सहायता के लिए हमारी पूरी टीम कार्य कर रही है। वे नियमित रूप से चूजों की बिमारियों की रोकथाम एवं उसके मृत्यु दर को कम करने के लिए लगातार निरिक्षण करते है। चूजे सामान्यतः एक महीने में बेचने के लायक तैयार हो जाता है। हमारी टीम चूजों की टीका और खाने के संबंध में हमेषा किसानों को बताते है। शेड को साफ रखने की जानकारी भी दी जाती हेै। झारखंड राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में आय सृजन के लिए पषुपालन एक मुख्य स्त्रोत है। प्रदेष में अंडे और मांस की मांग, पूर्ति की तुलना से कहीं ज्यादा है। वर्ष 2010-11 की एक वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में वर्ष 2008-09 में अंडों का कुल उत्पादन 717 मिलियन था जो मांग से 37.27 प्रतिषत कम था वहीं मांस की उपलब्धता 441.67 लाख किलोग्राम थी जो 32.77 प्रतिषत कम थी। मतलब साफ है कि प्रदेष में मांस और अंडे की पूर्ति की कमी है और ग्रामीण क्षेत्र के युवा इसे आय का स्त्रोत बना सकते है। सोसाइटी फॉर रूरल इंडस्ट्रीलाईजेषन(एसआरआई) और सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडेरिटी (सीडब्ल्यूएस) इस उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए रांची जिला के अनगड़ा प्रखंड में जोरों से कार्य कर रही है। खासकर मूर्गी एवं सुकर पालन को प्रोत्साहन मिल रहा है और इसके लिए पाल्ट्री के पांच इकाई में 100-100 मूर्गियों का पालन किया गया और उसे स्थानीय बाजार में बेचा गया। वर्ष 2012 में मूर्गी पालन को एक समूह के माध्यम से 17375 किलोग्राम बेचा गया और 1,31,366 रूप्ए की कमायी की। वर्तमान में लगभग 24 इकाई में मूर्गी एवं सुकर पालन का काम चल रहा है। उम्मीद है कि हमारा यह प्रयास और किसानों की मेहनत मूर्गी पालन को एक नई दिषा देगी और साथ ही साथ अनेक परिवार को आत्मनिर्भर बनाएगा। नाबार्ड और सरकार दोनो इस उद्योग को सहयोग दे रही है और इसे सफल बनाने के लिए तकनीकी मार्गदर्षन अत्यंत आवष्यक है।


No comments:

Post a Comment